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Sindhu Ghati Sabhyata (2025): इतिहास, राखीगढ़ी DNA और 50+ रहस्य | Indus Valley Civilization

नमस्कार दोस्तों, आपका स्वागत है आपके पसंदीदा वेबसाइट LikeBihar.in पर! आज हम आपको इतिहास के उस सुनहरे दौर में ले चलेंगे, जिसे दुनिया Sindhu Ghati Sabhyata (Indus Valley Civilization) के नाम से जानती है। यह भारत की वो भूमि है, जहाँ सभ्यता का सूरज सबसे पहले उगा था।

सिंधु घाटी सभ्यता: 8000 साल पुरानी गौरवगाथा और राखीगढ़ी के नए रहस्य (Indus Valley Civilization 2025 Guide)

क्या आप जानते हैं कि जब दुनिया के बाकी लोग गुफाओं और जंगलों में जीवन जीने का तरीका सीख रहे थे, तब हमारे पूर्वज (Ancestors) पक्की ईंटों के बने दो-मंजिला घरों में रहते थे? उनके पास स्विमिंग पूल (Great Bath) थे और गलियां ऐसी थीं जो आज के ‘स्मार्ट सिटी’ को भी मात दे दें।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) की। हाल ही में 2024-25 में राखीगढ़ी (Rakhigarhi) में हुई खुदाई और DNA रिपोर्ट्स ने यह साबित कर दिया है कि यह सभ्यता हमारी सोच से कहीं ज्यादा पुरानी और विकसित थी। आइये, इस गर्वपूर्ण इतिहास को गहराई से जानते हैं।

📌 इस महा-आर्टिकल में आप क्या पढ़ेंगे (Table of Contents)

1. सिंधु सभ्यता क्या है? (एक परिचय)

सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) दक्षिण एशिया के इतिहास का वह पहला अध्याय है, जिसने दुनिया को बताया कि ‘शहरी जीवन’ (Urban Life) कैसे जिया जाता है। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है। यह सभ्यता अपनी शांतिप्रियता, स्वच्छता और अद्भुत इंजीनियरिंग के लिए जानी जाती है।

💡 ताज़ा अपडेट (2024-25): पहले इसे 3300 ईसा पूर्व (BCE) का माना जाता था, लेकिन राखीगढ़ी और अन्य स्थलों से मिली नई कार्बन डेटिंग रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसकी जड़ें 7000 से 8000 साल पुरानी हो सकती हैं। यानी हम और भी ज्यादा प्राचीन और महान विरासत के वारिस हैं!

2. खोज की कहानी: कैसे मिली यह खोई हुई दुनिया?

1920 से पहले तक अंग्रेज और दुनिया के इतिहासकार यही मानते थे कि भारत का इतिहास सिर्फ ‘वैदिक काल’ या सिकंदर के आक्रमण से शुरू होता है। लेकिन 1921 में भारतीय पुरातत्वविदों ने जमीन के नीचे छिपे एक ऐसे रहस्य से पर्दा उठाया, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया।

यह खोज किसी चमत्कार से कम नहीं थी। रेल की पटरियां बिछाने के लिए जब ईंटों की जरूरत पड़ी, तो लोगों ने अनजाने में हड़प्पा के खंडहरों से ईंटें निकालना शुरू कर दिया। बाद में पता चला कि वे ईंटें किसी साधारण इमारत की नहीं, बल्कि एक महान सभ्यता की थीं।

प्रमुख स्थल और उनके खोजकर्ता (Exam Special)

यहाँ हमने आपके लिए उन महान नायकों और जगहों की सूची तैयार की है, जिन्होंने हमें हमारे अतीत से मिलाया। यह जानकारी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ‘रामबाण’ है।

स्थल (Site) और स्थानखोजकर्ता और विशेषताएँ
हड़प्पा (Harappa)
📍 पंजाब (पाकिस्तान)
खोज: दयाराम साहनी (1921)
अन्य: एम.एस. वत्स (1926), व्हीलर (1946)
खास बात: यह खोजा गया पहला शहर था। यहाँ से 6 अन्नागार (Granaries) और ‘Cemetery H’ (कब्रिस्तान) मिले हैं।
मोहनजोदड़ो (Mohenjo-daro)
📍 सिंध (पाकिस्तान)
खोज: राखालदास बनर्जी (R.D. Banerji, 1922)
खास बात: इसे ‘मृतकों का टीला’ कहा जाता है। यहाँ सबसे प्रसिद्ध विशाल स्नानागार (Great Bath), अन्नागार और कांसे की नर्तकी (Dancing Girl) मिली है।
लोथल (Lothal)
📍 गुजरात (भारत)
खोज: एस.आर. राव (1954)
खास बात: यह दुनिया का सबसे पुराना बंदरगाह (Dockyard) था। यहाँ अग्नि वेदिकाएं (Fire Altars) भी मिली हैं जो धार्मिक कार्यों की ओर इशारा करती हैं।
धौलावीरा (Dholavira)
📍 गुजरात (भारत)
खोज: जे.पी. जोशी (1967-68) और आर.एस. बिष्ट
खास बात: जल प्रबंधन (Water Harnessing) का बेहतरीन उदाहरण। यहाँ एक विशाल स्टेडियम और साइनबोर्ड मिला है। शहर तीन भागों में बंटा था।
राखीगढ़ी (Rakhigarhi)
📍 हरियाणा (भारत)
खोज: सूरज भान (1969), अमरेंद्र नाथ और वसंत शिंदे
खास बात: यह सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल (Largest Site) है। यहाँ से मिले DNA सबूतों ने आर्यन थ्योरी को नई दिशा दी है। (इसके बारे में हम आगे विस्तार से बात करेंगे)।

3. सभ्यता का विस्तार: कहाँ तक फैली थी हमारी विरासत?

यह सभ्यता कोई छोटी-मोटी बस्ती नहीं थी, बल्कि यह उस समय की दुनिया की सबसे विस्तृत सभ्यताओं में से एक थी। इसका क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा था। अगर हम आज के नक्शे पर देखें, तो यह:

  • 🌍 उत्तर (North): मांडा (जम्मू-कश्मीर) तक।
  • 🌍 दक्षिण (South): दायमाबाद (महाराष्ट्र) तक।
  • 🌍 पूर्व (East): आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक।
  • 🌍 पश्चिम (West): सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान, पाकिस्तान) तक।

सोचिये! उस दौर में बिना आधुनिक गाड़ियों और कम्युनिकेशन के, हमारे पूर्वजों ने इतना विशाल और एक जैसा (Uniform) सिस्टम कैसे बनाया होगा? यह उनकी बुद्धिमत्ता और मैनेजमेंट का जीता-जागता सबूत है।

दोस्तों, यह तो बस शुरुआत है। असली रोमांच तो अब शुरू होगा जब हम देखेंगे कि उनके शहर कैसे बने थे? क्या सच में उनके पास आज जैसे बाथरूम और नालियां थीं? क्या वे पिज़्ज़ा-बर्गर जैसा कुछ खाते थे? यह सब हम जानेंगे अगले भाग में।

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4. दुनिया की पहली ‘स्मार्ट सिटी’: नगर नियोजन (Town Planning) का जादू

दोस्तों, आज हम ‘Smart City’ की बात करते हैं, लेकिन हमारे पूर्वजों ने 4500 साल पहले ही यह करके दिखा दिया था। सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी खासियत उनकी अद्भुत नगर योजना (Town Planning) थी। जब आप इनके शहरों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे किसी कुशल आर्किटेक्ट ने पहले नक्शा बनाया और फिर शहर बसाया।

यहाँ की सड़कें टेढ़ी-मेढ़ी नहीं थीं, बल्कि एक-दूसरे को 90 डिग्री (समकोण) पर काटती थीं। इसे ‘ग्रिड सिस्टम’ (Grid System) या शतरंज की बिसात (Chessboard Pattern) कहा जाता है। कल्पना कीजिये, हवा चलने पर सड़कें अपने आप साफ हो जाती थीं! इतनी बेहतरीन सोच उस जमाने में होना किसी चमत्कार से कम नहीं है।

🏰 शहर के दो हिस्से: सुरक्षा और समाज का अनूठा संगम

सिंधु सभ्यता के लगभग सभी शहर दो भागों में बंटे हुए थे। यह व्यवस्था बताती है कि उनका समाज कितना व्यवस्थित था:

  • 1. पश्चिमी टीला (Citadel/Upper Town): यह हिस्सा ऊंचाई पर बना होता था और चारों तरफ से मजबूत दीवारों से घिरा होता था। यहाँ शायद राजा, पुजारी या प्रशासनिक अधिकारी रहते थे। बाढ़ से बचने के लिए इसे ऊंचे चबूतरे पर बनाया जाता था।
  • 2. पूर्वी टीला (Lower Town): यह हिस्सा थोड़ा नीचे था और बड़ा था। यहाँ आम जनता, व्यापारी, शिल्पकार और कारीगर रहते थे। यह ईंटों के पक्के मकानों का शहर था।

👉 अपवाद (Exception): धौलावीरा (Dholavira) एकमात्र ऐसा शहर था जो दो नहीं, बल्कि तीन भागों में बंटा हुआ था।

5. आर्किटेक्चर के चमत्कार (Architectural Marvels)

अब दिल थाम कर बैठिये, क्योंकि हम उन इमारतों की बात करने जा रहे हैं जो उस दौर की इंजीनियरिंग का ‘मास्टरपीस’ मानी जाती हैं। इनका आकार और बनावट देखकर आज के इंजीनियर भी सलाम ठोकते हैं।

(A) विशाल स्नानागार (The Great Bath) – मोहनजोदड़ो

मोहनजोदड़ो में मिला यह ‘विशाल स्नानागार’ आज के मॉडर्न स्विमिंग पूल जैसा है। यह सिर्फ नहाने की जगह नहीं थी, बल्कि इसका इस्तेमाल विशेष धार्मिक अवसरों पर ‘पवित्र स्नान’ (Ritual Bathing) के लिए किया जाता था। इसकी तकनीक इतनी जबरदस्त थी कि एक बूंद पानी भी लीक नहीं होता था।

आयाम (Dimensions)माप और विशेषता (Facts)
लम्बाई (Length)11.88 मीटर (लगभग 39 फीट)
चौड़ाई (Width)7.01 मीटर (लगभग 23 फीट)
गहराई (Depth)2.43 मीटर (लगभग 8 फीट)
वाटरप्रूफिंग तकनीकईंटों को जिप्सम के गारे से जोड़ा गया था और पानी रोकने के लिए उस पर बिटुमन (Bitumen/Natural Tar) की परत चढ़ाई गई थी।

(B) विशाल अन्नागार (The Great Granary) – मोहनजोदड़ो

सोचिये, अगर अकाल पड़ जाए तो क्या होगा? हमारे पूर्वज इसके लिए पहले से तैयार थे। ‘विशाल अन्नागार’ उस समय का ‘फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (FCI) था। यह मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत थी।

📏 विशालता का सबूत: इसकी लंबाई 45.71 मीटर और चौड़ाई 15.23 मीटर थी。

हवा के सर्कुलेशन (Ventilation) के लिए इसमें विशेष नालियां बनाई गई थीं ताकि अनाज सड़े नहीं। हड़प्पा में भी ऐसे ही 6-6 की कतार में 12 अन्नागार मिले हैं। यह बताता है कि वे टैक्स (Tax) के रूप में अनाज लेते थे और उसे जमा करते थे।

6. दुनिया का सबसे बेहतरीन ड्रेनेज सिस्टम (Drainage System)

अगर आप मुझसे पूछें कि सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी? तो मेरा जवाब होगा – उनकी सफाई और जल निकासी प्रणाली। उस समय की समकालीन सभ्यताएं (जैसे मेसोपोटामिया) भी सफाई के मामले में सिंधु घाटी के आगे कहीं नहीं टिकती थीं।

यहाँ के हर घर से गंदा पानी निकलने के लिए छोटी नालियां थीं, जो गली की बड़ी नाली में मिलती थीं। और सुनिए, सबसे हैरान करने वाली बातें:

  • ढकी हुई नालियां: नालियां खुली नहीं थीं, बल्कि उन्हें पत्थरों या ईंटों से ढका गया था ताकि गंदगी और बदबू न फैले। स्वास्थ्य (Health) के प्रति इतनी जागरूकता कमाल की है!
  • मैनहोल (Manholes): नालियों की सफाई के लिए थोड़ी-थोड़ी दूर पर ‘मैनहोल’ या ‘सोक पिट’ (Soak Pits) बनाए गए थे। कचरा वहीं रुक जाता था और पानी आगे बह जाता था।
  • पक्की ईंटें: नालियां बनाने में ‘Waterproof’ पक्की ईंटों और जिप्सम का इस्तेमाल होता था।

7. ईंटों का विज्ञान: अनुपात का जादू (Standardization)

आपने कभी सोचा है कि हजारों किलोमीटर दूर फैले शहरों (हड़प्पा से लोथल तक) में ईंटों का साइज़ बिल्कुल एक जैसा कैसे था? यह उनकी मानकीकरण (Standardization) की शक्ति को दिखाता है।

वे धूप में सूखी ईंटों का इस्तेमाल कम करते थे, बल्कि आग में पकाई गई (Burnt Bricks) ईंटों का इस्तेमाल ज्यादा करते थे। इनका एक निश्चित अनुपात (Ratio) था:

1 : 2 : 4

(ऊँचाई : चौड़ाई : लम्बाई)

यही कारण है कि 4000 साल बाद भी उनकी दीवारें आज भी सीना तान कर खड़ी हैं। यह ईंटें उतनी ही मजबूत हैं जितनी आज की मॉडर्न ईंटें। इसे कहते हैं ‘Quality Without Compromise’!

दोस्तों, अभी तो हमने सिर्फ उनके घरों और शहरों को देखा है। Part 3 में हम उनके घरों के अंदर झांकेंगे। हम जानेंगे कि वे खाते क्या थे? (Diet), पहनते क्या थे? (Fashion & Jewelry) और उनका व्यापार (Trade) दुनिया में कैसे डंका बजाता था। यकीन मानिये, उनके ‘फैशन सेंस’ को जानकर आप हैरान रह जाएंगे!

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8. आर्थिक जीवन: खेती और पशुपालन (Agriculture & Animal Husbandry)

दोस्तों, किसी भी सभ्यता की रीढ़ उसकी अर्थव्यवस्था (Economy) होती है। सिंधु घाटी के लोग सिर्फ शहर बनाने में ही नहीं, बल्कि खेती-बाड़ी में भी उस्ताद थे। सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियाँ हर साल उपजाऊ मिट्टी लाती थीं, जिससे यहाँ “सोना उगता” था।

🌾 गर्व का पल (Proud Moment):

क्या आप जानते हैं? पूरी दुनिया को कपास (Cotton) का तोहफा सिंधु घाटी सभ्यता ने ही दिया था। यूनानी लोग इसे ‘सिंडोन’ (Sindon) कहते थे, जो ‘सिंधु’ शब्द से बना है। हम दुनिया के सबसे पहले कपास उत्पादक थे!

वे मौसम के हिसाब से खेती करते थे—बिल्कुल आज के किसानों की तरह। नवंबर में बुवाई और अप्रैल में कटाई। आइये देखते हैं उनकी “फूड बास्केट” में क्या-क्या था:

फसल का प्रकार (Category)प्रमुख फसलें (Main Crops)
मुख्य अनाज (Staple Food)गेहूँ (Wheat) और जौ (Barley)। ये उनका मुख्य भोजन था। बनावली में ‘बढ़िया किस्म का जौ’ मिला है।
अन्य फसलें (Other Crops)मटर, सरसों, तिल (Sesame), और खजूर। तिल का इस्तेमाल तेल के लिए होता था।
चावल (Rice) – विशेषचावल के दाने लोथल और रंगपुर (गुजरात) में मिले हैं। हालांकि, इसका उत्पादन गेहूँ की तुलना में कम था।
पशुपालन (Animals) प्रिय पशु: कुबड़ वाला सांड (Humped Bull – सबसे सम्मानित)।
अन्य: भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर।
घोड़ा (Horse): यह एक विवादास्पद विषय है, लेकिन सुरकोटदा में घोड़े की हड्डियां मिली हैं। फिर भी, घोड़ा उनका मुख्य पशु नहीं था।

9. व्यापार और वाणिज्य: ग्लोबल बिज़नेस के बादशाह

सिंधु घाटी के लोग युद्ध प्रेमी नहीं, बल्कि शांतिप्रिय व्यापारी (Traders) थे। उनका व्यापार सिर्फ आस-पास के गांवों तक सीमित नहीं था, बल्कि वे सात समुंदर पार “मेसोपोटामिया” (इराक) तक व्यापार करते थे।

मेसोपोटामिया के अभिलेखों में सिंधु घाटी को ‘मेलुहा’ (Meluhha) कहा गया है। यह नाम उनकी समृद्धि और क्वालिटी प्रोडक्ट्स का प्रतीक था। वे चीजों का आदान-प्रदान (Barter System) करते थे, लेकिन मापन के लिए उनके पास सटीक बाट (Weights) थे जो 16 के गुणक (16, 64, 160…) में होते थे।

क्या आता था और क्या जाता था? (Import-Export Guide)

यह जानकारी आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि हमारे संबंध दुनिया से कितने गहरे थे:

धातु/वस्तु (Item)कहाँ से आता था? (Source Region)
तांबा (Copper)खेतड़ी (राजस्थान) और ओमान (Makan)
सोना (Gold)कोलार (कर्नाटक) और अफगानिस्तान
चांदी (Silver)अफगानिस्तान और ईरान (फारस)
लाजवर्द (Lapis Lazuli)शॉर्टुगई (अफगानिस्तान) – यह नीले रंग का कीमती पत्थर था।
हम क्या बेचते थे? (Exports)सूती वस्त्र (Cotton), हाथी दांत की वस्तुएं, मनके (Beads), इमारती लकड़ी और मसाले।

10. कला, फैशन और मनोरंजन: लाइफस्टाइल हो तो ऐसी!

अगर आपको लगता है कि पुराने जमाने के लोग बोरिंग थे, तो फिर से सोचिये! सिंधु घाटी के लोग कला प्रेमी, फैशनेबल और जीवन का आनंद लेने वाले लोग थे।

(A) फैशन और आभूषण (Jewelry & Fashion)

चाहे पुरुष हो या महिला, आभूषण पहनने का शौक सबको था। अमीर लोग सोने, चांदी और कीमती पत्थरों (जैसे कार्नेलियन) के गहने पहनते थे, जबकि आम लोग तांबे और टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) के गहने पहनते थे।

  • 💍 गले के हार और अंगूठियां: कई लड़ियों वाले हार, बाजूबंद और अंगूठियां आम थीं।
  • 💄 सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetics): चन्हूदड़ो (Chanhudaro) से लिपस्टिक (Lipstick) और काजल के सबूत मिले हैं। वे दर्पण (Mirrors) के रूप में तांबे का इस्तेमाल करते थे।

(B) खिलौने और मनोरंजन (Toys & Fun)

बच्चों के लिए उनका प्यार उनके खिलौनों में दिखता है। उन्होंने विज्ञान का इस्तेमाल करके ऐसे खिलौने बनाए जो चलते-फिरते थे।

🎲 शतरंज का पूर्वज: लोथल से एक शतरंज जैसा खेल (Board Game) मिला है। वे पासा (Dice) खेलने के बहुत शौकीन थे।
🧸 चलने वाले खिलौने: ऐसे बैल और जानवर मिले हैं जिनके सिर हिलाने के लिए धागे का इस्तेमाल होता था। मिट्टी की सीटी (Whistles) और छोटी गाड़ियां भी मिली हैं।

(C) धातुकला और मुहरें (Metallurgy & Seals)

सिंधु घाटी के कारीगर धातु पिघलाने और ढालने में माहिर थे।

  • नर्तकी की मूर्ति (Dancing Girl): मोहनजोदड़ो से मिली 4 इंच की यह कांसे की मूर्ति ‘Lost Wax Technique’ (मोम विधि) का बेहतरीन उदाहरण है। वह आत्मविश्वास से भरी हुई मुद्रा में खड़ी है।
  • मुहरें (Seals): सेलखड़ी (Steatite) से बनी हजारों मुहरें मिली हैं। सबसे प्रसिद्ध ‘पशुपति शिव’ की मुहर है, जिसमें एक योगी जानवरों (हाथी, बाघ, गैंडा, भैंसा) से घिरे हुए हैं। सबसे ज्यादा चित्र ‘एकल श्रृंगी पशु’ (Unicorn) के मिले हैं।

दोस्तों, अब हम कहानी के सबसे रोमांचक और निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुके हैं। Part 4 में हम उस सवाल का जवाब देंगे जो हर कोई जानना चाहता है – “इतनी महान सभ्यता आखिर कहाँ चली गई?” और साथ ही राखीगढ़ी की लेटेस्ट DNA रिपोर्ट क्या कहती है? क्या हम उन्हीं के वंशज हैं?

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11. राखीगढ़ी के खुलासे: क्या हम उन्हीं के वंशज हैं? (DNA Report 2024-25)

दोस्तों, सालों से इतिहास की किताबों में हमें पढ़ाया गया कि कोई ‘बाहरी लोग’ (आर्य) आए और उन्होंने इस सभ्यता को खत्म कर दिया। लेकिन राखीगढ़ी (हरियाणा) में हुई हालिया खुदाई और DNA टेस्ट ने इस थ्योरी को पूरी तरह बदल दिया है। यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।

🧬 DNA का सच: “हम यहीं के थे, हम यहीं हैं”

राखीगढ़ी के टीला नंबर 7 (RGR-7) से एक 4500 साल पुरानी महिला का कंकाल मिला। जब वैज्ञानिकों ने उसके DNA का विश्लेषण किया, तो दो चौंकाने वाली बातें सामने आईं:

  • 1. कोई विदेशी अंश नहीं: हड़प्पा के लोगों के DNA में ‘स्टेपी’ (मध्य एशियाई) जीन नहीं मिले। इसका मतलब है कि यह सभ्यता पूरी तरह से स्वदेशी (Indigenous) थी। इसका विकास यहीं के लोगों ने किया था।
  • 2. अटूट रिश्ता: सबसे बड़ी बात यह है कि उस महिला का DNA आज के दक्षिण एशियाई (भारतीय) लोगों से मेल खाता है। यानी, सिंधु घाटी के लोग कहीं गायब नहीं हुए, हम (मैं और आप) उन्हीं के बच्चे हैं! हमारी रगों में उन्हीं का खून दौड़ रहा है।

12. पतन या परिवर्तन? (The Mystery of Migration)

अक्सर पूछा जाता है कि “इतनी महान सभ्यता खत्म कैसे हो गई?” लेकिन दोस्तों, सभ्यताएं कभी मरती नहीं, वे बस जगह और रूप बदल लेती हैं। इसे ‘विनाश’ कहना गलत होगा, यह एक ‘बदलाव’ (Transformation) था।

वैज्ञानिक शोध (IIT खड़गपुर और अन्य संस्थाओं द्वारा) बताते हैं कि लगभग 4000 साल पहले जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हुआ।

कारण (Reason)विस्तृत विवरण (Details)
सरस्वती नदी का सूखनाज्यादातर बस्तियां ‘सरस्वती’ (घग्घर-हाकरा) नदी के किनारे थीं। टेक्टोनिक प्लेट्स हिलने से नदी का रास्ता बदल गया और पानी सूख गया। पानी के बिना शहर चलाना मुश्किल हो गया।
मानसून का कमजोर होनालगभग 2000 BCE के आसपास सूखा पड़ा। खेती कम होने लगी, जिससे बड़े शहरों का पेट भरना मुश्किल हो गया।
पूर्व की ओर पलायन (Migration)लोग मरे नहीं, बल्कि वे सिंधु नदी को छोड़कर गंगा-यमुना के मैदानों (पूर्व और दक्षिण) की तरफ चले गए। वहाँ उन्होंने फिर से छोटे-छोटे गाँव बसाए जो बाद में ‘वैदिक संस्कृति’ का आधार बने।

13. आज भी ज़िंदा है सिंधु सभ्यता (Our Living Heritage)

अगर आपको लगता है कि वह सभ्यता इतिहास बन गई, तो जरा अपने आस-पास देखिये। हम आज भी वही चीजें करते हैं जो हमारे पूर्वज करते थे:

  • 🙏 नमस्ते करना: हाथ जोड़ने की मुद्रा वाली मूर्तियां मिली हैं।
  • 🕉️ योग और शिव पूजा: पशुपति मुहर योग और ध्यान की शुरुआत का सबूत है।
  • 🔴 मांग में सिंदूर: महिलाओं की मूर्तियों में मांग भरी हुई मिली है।
  • 🌳 पीपल और स्वस्तिक: पीपल के पेड़ और स्वस्तिक चिह्न की पूजा आज भी होती है।

14. अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

❓ सिंधु सभ्यता की खोज सबसे पहले किसने की थी?
उत्तर: सबसे पहले 1921 में दयाराम साहनी ने ‘हड़प्पा’ की खोज की थी, जिसके बाद 1922 में राखालदास बनर्जी ने ‘मोहनजोदड़ो’ को खोजा।

❓ सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर कौन सा है?
उत्तर: क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का राखीगढ़ी (हरियाणा) अब सबसे बड़ा स्थल माना जाता है। इससे पहले मोहनजोदड़ो को सबसे बड़ा माना जाता था।

❓ क्या सिंधु घाटी के लोग लोहे (Iron) के बारे में जानते थे?
उत्तर: जी नहीं, यह एक ‘कांस्य युगीन’ (Bronze Age) सभ्यता थी। उन्हें तांबे, कांसे, सोने और चांदी का ज्ञान था, लेकिन लोहे की खोज बाद में (वैदिक काल में) हुई।

❓ हड़प्पा सभ्यता की लिपि (Script) को किसने पढ़ा है?
उत्तर: अभी तक उनकी लिपि (जो भावचित्रात्मक/Pictographic है) को कोई भी सफलतापूर्वक नहीं पढ़ पाया है। जिस दिन यह पहेली सुलझेगी, इतिहास के कई नए पन्ने खुलेंगे!

निष्कर्ष: गर्व करें अपनी विरासत पर!

दोस्तों, सिंधु घाटी सभ्यता सिर्फ खंडहर नहीं, बल्कि हमारी उन्नति की नींव है। उनकी सफाई, उनका अनुशासन और उनका शांतिप्रिय जीवन आज भी हमें प्रेरणा देता है। हमें गर्व होना चाहिए कि हम दुनिया की सबसे पुरानी और महान सभ्यता के वारिस हैं।

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⚠️ अस्वीकरण (Disclaimer)

इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों, पुरातात्विक रिपोर्टों और राखीगढ़ी के नवीनतम शोधों (2025) पर आधारित है। LikeBihar.in का उद्देश्य केवल शिक्षा और जागरूकता फैलाना है। हम किसी भी ऐतिहासिक तथ्य की 100% सटीकता का दावा नहीं करते, क्योंकि इतिहास में नए शोधों के साथ बदलाव संभव हैं। कृपया किसी भी परीक्षा या शोध कार्य के लिए आधिकारिक सरकारी स्रोतों (ASI) से मिलान अवश्य करें।

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